अस्पताल सेवा

समितियों के ये भी एक सेवा का अवसर मिल सकता है कि महीने में एक दिन ऐसा रखें कि जहाँ रहते है उस इलाके कि अस्पताल है तो  मरीजों का दर्शन करने चले जाएँ। दो दो फल,पांच पांच फल , चार - चार फल और कोई निर्भीकता जैसे 'जीवन रसायन' पुस्तक दे उनको। ये कार्य भी समितियां कर सकती है। जो दर्दी हैं बीमार लोग हैं उनसे भी महीने में एक बार, दो महीने में एक बार, तीन महीने में एक बार, १५ दिन में..... जैसे आप लोगों की सुविधा।  घूमना भी हो गया थोड़ा और मरीजों को देख कर कहो कि शरीर की ये हालत! अपना वैराग्य भी बढ़ेगा।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

राशनकार्ड सेवा

 दूसरी बात भी ये कहनी थी की जहाँ जहाँ समिति के भाई है वहाँ वहाँ जो सफ़ेद पोशाख वाले है, गरीबों को, आदिवासियों को तो देते है,सेवा करते है वो ठीक है लेकिन कुछ ऐसे जो आदिवासियों से भी आदिवासी है।  ऐसे लोग भी है।  कपडे तो अच्छे है लेकिन आदिवासियों से भी ज्यादा उनकी स्थिति दयाजनक है। पच्चीस रूपया दिन में कमाएंगे और छः आदमी होते घर में, पांच आदमी होते, बूढ़ी माँ होती है, छोरे को पच्चीस रुपये मिलते है। तो ऐसे लोगों को भी अगर तुम्हारे नजर में हो तो लिस्ट बनाकर, छोटा मोटा राशन कार्ड बना कर उनको भी थोड़ी बहुत मदद दे सको तो देना। और कुछ तुम दो थोड़ा यहाँ से अहमदाबाद  समिति से। अहमदाबाद समिति नहीं तो फिर अपना गुरु समिति से, मिल-जुल कर सेवा कर लें।


नारायण हरि  नारायण हरि


अहमदाबाद समिति की भी कोई लिमिट है तो थोड़ा वह समिति ये समिति।  सत्कर्म होते रहे।


लेके तो हमारा बाप नहीं गया रोटी तो उसके बाप को देनी है फिर

संग्रह आदि अच्छा नहीं ये मोक्ष पथ में आड़ है।

कैसे भला तू भाग सके। सिर पे लदा जो भार है।


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सत्य स्वरुप ईश्वर के सुख सामर्थ्य को पाओ

वो पहले समय था कि कम समितियों में कभी किसका देखते है , अभी देखने का भी टाइम नहीं रहता।  सच्ची बात है। और ये एक एक का बैठके ध्यान लगाए ये अब मेरे बस का नहीं। इसीलिए भी ये जो तुम्हारा आयोजन हुआ अच्छा है ताकि मेरी बात सब तक पहुँच जाएगी और सब सावधान रहना।

खजांची बनकर अगर चुराएगा तो लाख- दो लाख – पांच लाख चुराएगा लेकिन ये भी मुश्किल है कि पांच लाख समिति का  खजांजी  बनकर चुरा ले। देर सबेर तो बात आ ही जाती है महाराज! उसका पोल खुल ही जाता है। और कोई नहीं खोले तो उसका अंतरात्मा तो उसको डंखता है कि किसीको पता न चलें। चेहरे पर गड़बड़ हो जाती है। लेकिन तुम्हारे जीवन में पांच लाख क्या होता है? पच्चीस लाख क्या होता है ? तुम तो सत्कर्म करके सत्य स्वरुप ईश्वर के सुख सामर्थ्य को पाओ ऐसा तुम्हारे को मिल रहा है।

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धर्मादे का पैसा खतरनाक

ये धर्मादे का पैसा ऐसा खतरनाक है महाराज! तौबा करो ...आरती कराई... हम तो किसी से नहीं लाये ... लेकिन यहाँ वहां से ... | इसमें यहाँ वहां से हुआ तो सब नाश हो जायेगा |

उस धर्मादे के पैसे में गड़बड़ होती है तभी बुद्धि में गड़बड़ हो जाती है। मुफत का खाना सत्यानाश जाना। तो आपकी समितियों को ये ध्यान रखना होगा।

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जवाबदारी से भागें नहीं

जो जवाबदारियों से भागते रहते वो अपनी योग्यता कुंठित कर देते। और जो निष्काम कर्मयोग की जगह पर एक दूसरे का टाटिया खींचते हैं वो अपने आप को खींच के गटर में ले जाते हैं |

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